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धडंग  : वि० [हिं० धड़+अंग] नंगा। जैसे—नंग-धडंग खड़े हो जाना।
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धड़  : पुं० [सं० धर+धारण करनेवाला] १. मनुष्य के शरीर का वह बीचवाला अंश, जिसके अंतर्गत छाती, पीठ और पेट होते हैं। सिर और हाथ-पैर को छोड़ शरीर का बाकी भाग। कमर के ऊपर और गले के नीचे का भाग। २. पशु-पक्षियों में हाथ, पैर, दुम पर और सिर को छोड़कर शरीर के बीच का बाकी सारा भाग। मुहा०—(कोई चीज) धड़ में डालना=निगल या खा जाना। पेट में उतारना। (किसी का) धड़ रह जाना=लकवे या ऐसे ही किसी रोग के कारण देह या शरीर निष्क्रिय और स्तब्ध हो जाना। धड़ से सिर अलग करना=सिर काट लेना, जिससे मृत्यु हो जाय। ३. पेड़ का वह सबसे मोटा और कड़ा भाग, जो जड़ से कुछ दूर ऊपर तक रहता है और जिसके ऊपरी भाग में से निकलकर डालियाँ इधर-उधर फैलती रहती हैं। पेड़ी। तना। पुं० [अनु०] एक प्रकार का बड़ा ढोल या नगाड़ा। पुं० [अनु०] किसी चीज के जोर से गिरने का शब्द। धड़ाम। जैसे—वह धड़ से गिर पड़ा। पद—धड़ से=चटपट। तुरन्त। जैसे—तुम भी धड़ से नहा लो।
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धड़क  : स्त्री० [हिं० धड़कना] १. धड़कने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. अनाभ्यास, भय, संकोच आदि के कारण कोई काम करने से पहले या करते समय मन में होनेवाला असमंजस या आशंका। मुहा०—(किसी बात या काम में) धड़क खुलना=पहले की सी आशंका, भय या संकोच न रह जाना। पद—बेधड़क=बिना किसी प्रकार के भय या संकोच के। भय रहित या निसंकोच होकर। ३. दे० ‘धड़कन’।
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धड़कन  : स्त्री० [हिं० धड़क] १. धड़कने की क्रिया या भाव। २. हृदय की गति बहुत तीव्र होने पर उसका तीव्र और स्पष्ट स्पंदन। ३. हृदय का एक रोग जिसमें वह प्रायः धड़कता रहता है। धड़की। ४. दे० ‘धड़क’।
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धड़कना  : अ० [अनु०] १. धड़-धड़ शब्द उत्पन्न होना। २. आशंका उद्वेग आदि तीव्र मनोविकारों अथवा कुछ रोगों के कारण हृदय में इस प्रकार जोर की गति होना कि उसमें से धड़-धड़ या हलका शब्द होने लगे। कलेजा धक-धक करना। जैसे—डाकुओं को देखते ही स्त्रियों का कलेजा (या दिल) धड़कने लगा। अ०, स०=धड़धड़ाना।a
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धड़का  : पुं० [अनु० धड़] १. दिल की धड़कन। २. दिल धड़कने से उत्पन्न होनेवाला शब्द। ३. आशंका। खटका। भय। जैसे—चलो मार खाने का धड़का छूटा। ४. खेतों में से चिड़ियों को उड़ाकर भगाने के लिए खड़ा किया जानेवाला वह पुतला या बाँस जिसे खट-खटाने से धड़-धड़ शब्द होता है। धोखा। पुं०=धड़ाका।a
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धड़काना  : स० [हिं० धड़क] १. किसी के दिल में धड़क पैदा करना। धड़कने में प्रवृत्त करना। २. किसी के मन में आशंका या खटका उत्पन्न करके उसे दहलाना। संयो० क्रि०—देना। ३. धड़-धड़ शब्द उत्पन्न करना।
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धड़क्का  : पुं० १. धड़का। २. धड़ाका। ३. ‘धूम’ का निरर्थक अनुकरणात्मक शब्द।
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धड़-टूटा  : वि० [हिं० धड़+टूटना] १. कमर झुकने के कारण जिसका धड़ आगे की तरफ लटका हो। २. कुबड़ा।
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धड़-धड़  : स्त्री० [अनु०] किसी भारी वस्तु के वेगपूर्वक या एक बारगी गिरने, फेकें जाने या छूटने से उत्पन्न होनेवाला धड़-धड़ शब्द। जैसे—गोलियों की धड़-धड़ सुनकर हम लोग घर के बाहर निकल आये। क्रि० वि० १. धड़-धड़ शब्द करते या होते हुए। जैसे—उस पर धड़-धड़ मार पड़ने लगी। २. दे० ‘धड़ाधड़’।
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धड़धड़ाना  : स० [अनु० धड़धड़] १. इस प्रकार कोई काम करना कि उससे धड़-धड़ शब्द हो। २. किसी प्रकार धड़-धड़ शब्द करना। अ० धड़-धड़ शब्द होना।
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धड़ल्ला  : पुं० [अनु० धड़] १. वेग के साथ गिरने, पड़ने आदि का धड़-धड़ शब्द। धड़ाका। २. तेजी। वेग। ३. निर्भीकता तथा उत्साह पूर्वक कोई काम करने की उत्कट प्रवृत्ति। ४. धूम-धाम। ५. बहुत अधिक भीड़। कश-मकश।
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धड़वा  : पुं० [देश०] मैना के आकार का एक तरह का पक्षी।a
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धड़वाई  : पुं० [हिं० धड़ा] अनाज आदि तौलनेवाला। बया।a
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धड़ा  : पुं० [सं० धट] [स्त्री० धड़ी] १. एक प्रकार की पुरानी तौल जो कहीं चार सेर की और कहीं पाँच सेर की मानी जाती थी। २. तौलने का बटखरा। बाट। ३. तराजू। तुला। मुहा०—धड़ा उठाना=तौलने के लिए तराजू उठाकर हाथ में लेना। धड़ा करना=तौलने से पहले तराजू उठाकर यह देखना कि दोनों पलड़े बराबर हैं या नहीं और यदि दोनों में कुछ अन्तर हो, तो किसी ओर पासंग रखकर वह अंतर दूर करना। धड़ा बाँधना=(क) धड़ा करना। (ऊपर देखें) (ख) लाक्षणिक रूप में, ऐसी युक्ति करना कि कोई दूसरा आदमी दोषी सिद्ध हो। पुं० जत्था। झुण्ड। दल। मुहा०—धड़ा बाँधना=अपना अलग दल या वर्ग बनाना। दलबंदी करना।
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धड़ाक  : क्रि० वि० [अनु०] १. धड़ शब्द करते हुए। जैसे—वह धड़ाक से गिर पड़ा। २. एकाएक। सहसा। जैसे—इतने में वह वहाँ धड़ाक से आ पहुँचा।a पुं०=धड़ाका।a
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धड़ाका  : पुं० [अनु० धड़] १. ‘धड़’ से होनेवाला जोर का शब्द धमाका। जैसे—तोप या बंदूक का धड़ाका। क्रि० वि० चटपट। तुरंत। जैसे—वह धड़ाका उठकर चल खड़ा हुआ। पद—धड़ाके से=चट-पट। तुरंत। धड़ल्ले से।
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धड़ा-धड़  : क्रि० वि० [अनु० धड़] १.धड़-धड़ शब्द करते हुए। जैसे—धड़ा-धड़ ईंट-पत्थर फेंकना या चलाना। २. जल्दी-जल्दी और बराबर। निरंतर लगातार। जैसे—धड़ाधड़ बोलते चलना।
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धड़ाबंदी  : स्त्री० [हिं० धड़ा+फा० बंदी] १. कोई चीज तौलने से पहले तराजू का धड़ा, पासंग आदि रखकर ठीक करने की क्रिया या भाव। २. किसी प्रकार की प्रतियोगिता, विरोध आदि के लिए प्रस्तुत होने के समय अपने सब अंग और पक्ष ठीक करना। ३. युद्ध के समय दोनों पक्षों का अपना सैनिक बल शत्रु के सैनिक बल के बराबर करना।
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धड़ाम  : पुं० [अनु० धड़] ऊँचाई से वेगपूर्वक नीचे आकर पड़ने, गिरने आदि का शब्द। धड़ या धम शब्द। पद—धड़ाम से=जल्दी या वेगपूर्वक और धड़ या धड़ाम शब्द करते हुए। जैसे—वह धड़ाम से नदी में कूद पड़ा।
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धड़िया  : पुं० [?] बच्चों की लँगोटी।a
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धड़ी  : स्त्री० [सं० धटिका,धटी] १. चार या पाँच सेर की पुरानी तौल। धड़ा। २. मान, संख्या आदि की बहुलता या यथेष्टता। मुहा०—धड़ी-धड़ी करके लूटना=खूब अच्छी तरह या बहुत लूटना। ३. पाँच सौ रुपये की रकम। ४. ढेर। राशि। उदा०—सज्जाणिया सावण हुया, धड़ि उकती भंडार।—ढोला मारू। ५. मोटी रेखा या लकीर। जैसे—मिस्सी लगाये या पान खाने से होंठों पर धड़ी जम जाती है। क्रि० प्र०—जमना। मुहा०—धड़ी जमाना=मिस्सी करके होंठों पर काली या नीली मोटी रेखा बनाना।
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